अधर में लटका विशेष पिछड़ा आरक्षण, हाईकोर्ट ने रद्द किया


Rajasthan High Court has canceled the special backward class resrvation bill-2015

Rajasthan High Court has canceled the special backward class reservation bill-2015

जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने शुक्रवार को विशेष पिछड़ा वर्ग आरक्षण विधेयक- 2015 को रद्द कर दिया है। न्यायाधीश मनीष भंडारी की बेंच ने आरक्षण को चुनौति देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद विशेष पिछड़ा वर्ग को अब पांच फीसदी आरक्षण नहीं मिलेगा। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राज्य में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दिया जाएगा। हाईकोर्ट ने इस कानून और इसके लिए जारी की गई अधिसूचना को असंवैधानिक बताया। राजस्थान में गुर्जर समाज आरक्षण की मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलन कर रहा है। 
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यह आंदोलन कई बार हिंसक भी हुआ। इसमें कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। राजस्थान विधानसभा ने आरक्षण को लेकर दो विधेयक पास कर दिए हैं। उन्होंने दोबारा गुर्जरों को एक अतिरिक्त कोटा में 5 प्रतिशत आरक्षण दिया है और एक अलग विधेयक में 14% आरक्षण दिया है आर्थिक पिछड़ा वर्ग को, लेकिन एक बार फिर राज्य में सुप्रीम कोर्ट की तय सीमा 50% से आरक्षण बढ़कर अब नए विधेयक के अनुसार 68% हो गया है। यानी यह कोटा सुप्रीम कोर्ट की सीमा को लांघ गया है।
2007, 2008 में हुए हिंसक गुर्जर आंदोलन के बाद तत्कालीन वसुंधरा सरकार ने ऐसा ही विधेयक पारित किया था, तब भी यह कानून पेचीदगियों में फंस गया था और 2009 में इस पर स्टे लग गया था।

विधानसभा सेशन खत्म होने के बाद इन दो विधेयकों को लेकर संसदीय कार्यमंत्री राजेंद्र राठौर ने कहा कि सरकार इन विधेयकों को लागू करवाने के लिए प्रतिबद्ध है और इसके लिए वे केंद्र को भी लिखेंगे।

कर्नाटक, ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में आरक्षण 50% से ज्यादा है, लेकिन कांग्रेस के सचिन पायलट ने इसे लोगों को गुमराह करने वाला बताया। उन्होंने कहा की केंद्र में बीजेपी की सरकार है इसलिए पहले संशोधन लाना चाहिए था फिर राजस्थान में बिल पारित होना चाहिए था।
राज्य सरकार ने पहली बार वर्ष 2008 में विशेष पिछड़ा वर्ग की अलग श्रेणी बनाते हुए पांच फीसदी आरक्षण दिया था। विशेष पिछड़ा वर्ग में 1. बंजारा, बालदिया, लबाना, 2. गाडिया लोहार, गाडोलिया, 3. गूजर, गुर्जर, 4. राईका, रैबारी, देबासी, 5. गडरिया, गाडरी, गायरी जातियों को शामिल किया था। इसके बाद प्रदेश में कुल आरक्षण 49 से बढ़कर 54 फीसदी हो गया था। इसके बाद वर्ष 2009 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी इस पर कोर्ट ने 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण देने पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए 2010 में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को आरक्षण पर पुर्नविचार के निर्देश दिए थे। इस पर वर्ष 2012 में पिछड़ा वर्ग आयोग ने गुर्जरों सहित पांच अन्य जातियों को विशेष पिछड़ा वर्ग में माना और पांच फीसदी आरक्षण देने की अनुशंसा की।
आयोग की अनुशंसा पर सरकार ने अधिसूचना जारी कर विशेष पिछड़ा वर्ग को पांच फीसदी आरक्षण दे दिया। इस पर कोर्ट ने वर्ष 2013 में फिर से 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण देने पर रोक लगा दी। इसके बार राज्य सरकार वर्ष 2015 में विशेष पिछड़ा वर्ग को पांच प्रतिशत आरक्षण देने के लिए राजस्थान विधानसभा में नया विधेयक लेकर आई और इसे पारित कर राज्य में लागू करवा दिया। लेकिन विधानसभा द्वारा बनाए गए नए कानून को कानून को कैप्टन गुरविंदर सिंह व समता आंदोलन समिति ने चुनौती दी थी। कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि संविधान के अनुसार आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन नहीं हो सकता। यह सीमा शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश पर भी लागू होती है। 
याचिकाकर्ताओं ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की अध्ययन रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा था कि रिपोर्ट पहले से ही सोची समझी रणनीति का हिस्सा थी। याचिका में कहा गया कि जब हाईकोर्ट ने 22 दिसंबर,2010 के आदेश में पूरी आरक्षण व्यवस्था का रिव्यू करने को कहा था। लेकिन पिछड़ा वर्ग आयोग ने ऐसा नहीं किया। इसके बाद कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को विशेष पिछड़ा वर्ग को पांच फीसदी आरक्षण देने वाले कानून और अधिसूचना को रद्द कर दिया। इस पूरे मामले को लेकर शुरू से ही गुर्जर समाज की ओर से सरकार पर हाईकोर्ट में अच्छी पैरवी कराने का दबाव बनता रहा।
सोजन्य से :- राजस्थान पत्रिका