अंतरास्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई इस रबारी महिला ने 

Pabiben Rabari wrote a success story from the struggle

Rabari Embroidery

Rabari Art


आज आपको रूबरू करवाते है ऐसी महिला से जिसकी कहानी उन तमाम महिलाओं के लिए प्रेणादायक है जो अपने जीवन में कुछ नया करना चाहती है, अपनी खुद की पहचान बनाना चाहती है। आपने नाम तो सुना होगा पाबिबेन रबारी का जो एक साहसी, निडर, आत्मनिर्भर और बुद्धिमान महिला का जो अपने संघर्षपूर्ण जीवन में समाज को अंतरास्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। पाबिबेन रबारी ने यह साबित करके दिखा दिया कि उपलब्धि और काबिलियत पैसो की मोहताज नहीं होती बल्कि हुनर और मेहनत लोगों के सर चढ़कर बोलती है। पाबिबेन रबारी ने अपने हुनर से न अपने तक सिमित रही बल्कि उन महिलाओं को भी रोजगार दिया जो घर पर चूल्हे चोके तक सिमट कर रह गयी थी।

पाबिबेन रबारी ने संघर्ष से लिखी सफलता की कहानी 

गुजरात के कच्छ जिले के गांव भदरोहि की रहने वाली पाबिबेन लक्ष्मण रबारी की धर्मपत्नी है। पाबिबेन रबारी का जीवन संघर्षमय मुश्किलों से भरा गुजरा है, जब वह पांच वर्ष की थी तब पिताजी इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। तब इनकी छोटी बहिन तीन वर्ष की थी और माँ गर्भवती थी। पाबिबेन ने माँ के संघर्षपूर्ण जीवन को अपनी आँखों से देखा है, जब माँ दुसरो के घरों पर काम करती थी। पाबिबेन रबारी अपनी बहनों में सबसे बड़ी थी। घर के आर्थिक हालात के कारन पाबिबेन सिर्फ कक्षा चार तक ही पढ़ पायी। मात्र 10 वर्ष की उम्र में ही माँ को काम में हाथ बटाने लग गयी। वह लोगों के घरों में पानी भरने का कार्य करती थी जिसकी एवज में उसे एक रुपया मेहनताना मिलता था।

 कढ़ाई: रबारी समुदाय की महिलाओं की परंपरागत कला है 

पाबिबेन ढेबरिया रबारी समुदाय  आती हैं जो पारम्परिक कढ़ाई में निपुण  होते हैं, ढेबरिया रबारी समुदाय गुजरात के कच्छ में निवास करते है। रबारी  समुदाय में एक ऐसा  रीती रिवाज होता है कि लड़कियां कपड़ों पर कढ़ाई करके अपना दहेज़ खुद तैयार करती है। इसी प्रथा के चलते वहां एक खास तरह की पारंपरिक कढाई बुनाई की जाती है। पाबिबेन ने बचपन में ही अपनी मां से इस कला को सीखा था। इस कढाई बुनाई में काफी बारीक काम होता उन दिनों एक कपडा तैयार करने में दो से तीन महीने का समय लग जाता। जिस कारन उन्हें काफी दिन घर पर रहना पड़ता है इस समस्या को ख़त्म करने के लिए इस समुदाय के बुजुर्ग लोगों ने यह तय किया है कि कढ़ाई का उपयोग अपने खुद के लिए नहीं करेंगे। लेकिन पाबिबेन नहीं चाहती थी कि यह पारंपरिक कला खत्म हो जाये, वो उसे निरंतर जारी रखा

हरी-जरी कढ़ाई के कारण बनाई अंतररास्ट्रीय पहचान 

Hari-Jari Rabari Embroidery 
Pabiben Rabari Products 
Pabiben Rabari Bags

Pabiben Rabari1998 में पाबिबेन ने रबारी महिला समुदाय ज्वाइन किया जिसे एक एनजीओ फण्ड करती थी। वे चाहती थीं कि यह कला भी ख़त्म न हो और समुदाय का नियम भी भंग न हो। इसलिए उन्होंने हरी जरी की खोज की जो ट्रिम और रिबन की तरह रेडीमेड कपड़ों पर किया जाने वाला एक मशीन एप्लीकेशन होता है। छह-सात साल तक यहाँ काम करने के बाद उन्होंने कुशन कवर, रजाई और कपड़ों पर डिज़ाइन बनाना शुरू किया जिसके लिए उन्हें महीने में 300 रुपये मिलते थे। पाबिबेन रबारी ने अपने पारम्परिक ज्ञान के कारण हरी-जरी कढ़ाई में महारथ हासिल किया है। उन्होंने पहला बैग अपनी शादी में बनाया था, अचानक इनकी शादी देखने आये विदेशी पर्यटकों ने बैग को देखकर प्रसंसा की तो पाबिबेन ने बैग भेंट स्वरूप उनको दिया। विदेशी सैलानियों ने बैग को विदेशों में पाबि बैग के नाम से प्रसिद्ध कर दिया। पाबिबेन रबारी की कला को अंतरास्ट्रीय स्तर पहचान मिली। आज पाबिबेन के बैग की मांग जर्मनी, लन्दन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे देशो में है। हॉलीवुड एवं बॉलीवुड फिल्मों में भी इनके बनाये प्रोडेक्ट उपयोग में लिए गए है। फिल्म "लक बाय चांस" में भी बैग को दर्शाया गया है। भारत सरकार ने ग्रामीण उधमी बनकर और महिलाओं की मदद  करने की वजह से वर्ष 2016 में पाबिबेन रबारी को "जानकी देवी बजाज" पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पाबिबेन विदेशो में पाबिबेन डॉट कॉम के नाम से उत्पाद बेच रही है। गाँधी फ़ेलोशिप पीएचडी स्कॉलर स्टूडेंट नीलेश प्रियदर्शी ने पाबिबेन के उत्पाद को वेबसाइट के जरिये अंतरास्ट्रीय बाजार में उतारा। पाबिबेन देश के अलग-अलग शहरों में भी अपने उत्पाद की प्रदर्शनी लगाती है। आज पाबिबेन के पास 60 से अधिक महिला काम कर रही है। 

चौथी पास पाबिबेन रबारी आज 20 लाख टर्नओवर कंपनी की मालकिन है  

शादी के बाद उनके पति ने भी पाबिबेन के कार्य में भरपूर साथ दिया और उनके कला को आगे बढ़ाने में पूर्ण रूप से सहयोग किया। कुछ वर्ष बाद उन्होंने अपनी कला को और निखारते हुए प्रदर्शनी में भी भाग लेना शुरू कर दिया।चौथी पढी पाबिबेन रबारी गाँव की महिलाओं के साथ मिल कर अपने काम को बढ़ाने का मन बनाया और पाबिबेन डॉट कॉम का निर्माण किया। उनके टीम को अहमदाबाद से करीब 70 हजार रूपये का पहला ऑडर मिला, जिसे पूरे टीम ने बहुत ही मेहनत से समय पर पूरा कर दिखाया। हर दिन नए डिजाइनिंग सीखने के प्रयास में लगी रहने वाली पाबिबेन आज 25 प्रकार के अलग-अलग डिज़ाइन पर काम कर रही है। आज उनकी कला के कारण उनकी कंपनी का टर्नओवर 20 लाख का है। गुजरात सरकार ने भी उनके काम की सराहना करते हुए बधाई दी और उनका मनोबल बढ़ाया।