सन्तान ही माता-पिता के जीवन का सुख है । राजा अजमल जी पुत्र प्राप्ति के लिये दान पुण्य करते, साधू सन्तों को भोजन कराते, यज्ञ कराते, नित्य ही द्वारकानाथ की पूजा करते थे । इस प्रकार राजा अजमल जी भैरव राक्षस को मारने का उपाय सोचते हुए द्वारका जी पहुंचे । जहां अजमल जी को भगवान के साक्षात दर्शन हुए, राजा के आखों में आंसू देखकर भगवान में अपने पिताम्बर से आंसू पोछकर कहा, हे भक्तराज रो मत मैं तुम्हारा सारा दु:ख जानता हूँ । मैं तेरी भक्ती देखकर बहुत प्रसन्न हूँ, माँगो क्या चाहिये तुम्हें मैं तेरी हर इच्छायें पूर्ण करूँगा ।
               भगवान की असीम कृपा से प्रसन्न होकर बोले हे प्रभु अगर आप मेरी भक्ती से प्रसन्न हैं तो मुझे आपके समान पुत्र चाहिये याने आपको मेरे घर पुत्र बनकर आना पड़ेगा और राक्षस को मारकर धर्म की स्थापना करनी पड़ेगी । तब भगवान द्वारकानाथ ने कहा- हे भक्त! जाओ मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि पहले तेरे पुत्र विरमदेव होगा तब अजमल जी बोले हे भगवान एक पुत्र का क्या छोटा और क्या बड़ा तो भगवान ने कहा- दूसरा मैं स्वयं आपके घर आउंगा । अजमल जी बोले हे प्रभू आप मेरे घर आओगे तो हमें क्या मालूम पड़ेगा कि भगवान मेरे धर पधारे हैं, तो द्वारकानाथ ने कहा कि जिस रात मैं घर पर आउंगा उस रात आपके राज्य के जितने भी मंदिर है उसमें अपने आप घंटियां बजने लग जायेगी,महल में जो भी पानी होगा (रसोईघर में) वह दूध बन जाएगा तथा मुख्य द्वार से जन्म स्थान तक कुमकुम के पैर नजर आयेंगे वह मेरी आकाशवाणी भी सुनाई देगी और में अवतार के नाम से प्रसिद्ध हो जाउँगा ।

श्री बाबा रामदेव जी का जन्म

  श्री रामदेव जी का जन्म संवत् 1409 में भाद्र मास की दूज को राजा अजमल जी के घर हुआ । उस समय सभी मंदिरों में घंटियां बजने लगीं, तेज प्रकाश से सारा नगर जगमगाने लगा । महल में जितना भी पानी था वह दूध में बदल गया, महल के मुख्य द्वार से लेकर पालने तक कुम कुम के पैरों के पदचिन्ह बन गए, महल के मंदिर में रखा संख स्वत: बज उठा । उसी समय राजा अजमल जी को भगवान द्वारकानाथ के दिये हुए वचन याद आये और एक बार पुन: द्वारकानाथ की जय बोली । इस प्रकार ने द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया ।

बाल लीला में माता को परचा

        भगवान नें जन्म लेकर अपनी बाल लीला शुरू की । एक दिन भगवान रामदेव व विरमदेव अपनी माता की गोद में खेल रहे थे, माता मैणादे उन दोनों बालकों का रूप निहार रहीं थीं । प्रात:काल का मनोहरी दृश्य और भी सुन्दरता बढ़ा रहा था । उधर दासी गाय का दूध निकाल कर लायी तथा माता मैणादे के हाथों में बर्तन देते हुए इन्हीं बालकों के क्रीड़ा क्रिया में रम गई । माता बालकों को दूध पिलाने के लिये दूध को चूल्हे पर चढ़ाने के लिये जाती है । माता ज्योंही दूध को बर्तन में डालकर चूल्हे पर चढ़ाती है । उधर रामदेव जी अपनी माता को चमत्कार दिखाने के लिये विरमदेव जी के गाल पर चुमटी भरते हैं इससे विरमदेव को क्रोध आ जाता है तथा विरमदेव बदले की भावना से रामदेव जी को धक्का मार देते हैं । जिससे रामदेव जी गिर जाते हैं और रोने लगते हैं । रामदेव जी के रोने की आवाज सुनकर माता मैणादे दूध को चुल्हे पर ही छोड़कर आती है और रामदेव जी को गोद में लेकर बैठ जाती है । उधर दूध गर्म होन के कारण गिरने लगता है, माता मैणादे ज्यांही दूध गिरता देखती है वह रामदेवजी को गोदी से नीचे उतारना चाहती है उतने में ही रामदेवजी अपना हाथ दूध की ओर करके अपनी देव शक्ति से उस बर्तन को चूल्हे से नीचे धर देते हैं । यह चमत्कार देखकर माता मैणादे व वहीं बैठे अजमल जी व दासी सभी द्वारकानाथ की जय जयकार करते हैं ।


बाल लीला में कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ाना

          एक दिन रामदेव जी महल में बैठे हुए थे उस समय रामदेव जी ५ वर्ष के थे । एक घुड़सवार को देखकर रामदेव जी ने बाल हठ किया कि मैं भी घोड़े पर बैठुंगा । रामदेव जी को मनाने के लिये माता ने खूब जत्न किये पीने के लिये दूध, खेलने कि लिये हाथी-घोड़े उँट आदि के खिलौने सामने रखे किन्तु अपने बाल हठ को नहीं छोड़ा । माता ने दासी को भेजकर राजघराने के दर्जी को बुलाया और समझाया कि कुंवर रामदेव के लिये कपड़ों का सुन्दर घोड़ा बनाकर लाओ उस पर लीला याने हरे कपड़े का झूल लगाकर लाना ।
               माता जी ने दर्जी को सुन्दर कपड़े दिये और कहा कि जाओ इन कपड़ों का घोड़ा तैयार करके लाओ । दर्जी के मन में लालच आया और उसने पुराने कपड़े का घोड़ा बनाकर उपर हरे रंग की झूल लगा दी और घोड़ा लेकर राजदरबार पहुँचा तथा रामदेव जी के सामने रखा तभी रामदेव जी ने अपना हठ तोड़ा ।
          श्री रामेदव जी कपड़े के बने घोड़े को देखकर बहुत खुश हुए और घोड़े पर सवारी करने लगे । ज्यूंहि भगवान श्री रामदेव जी घोड़े पर सवार हुए कपड़े का घोड़ा हिन हिनाता और आगे के दोनों पैर खड़ा होकर दरबार में ही नाचने लगा, कपड़े के घोड़े को नाचता देखकर सारा दरबार हिनले लगा । नाचते नाचते बालक को लेकर आकाश मार्ग की ओर घोड़ा उड़ चला । इसको देखकर सब घबराने लगे । माता मैणादे,राजा अजमल जी व भाई वीरमदेव सब ही अचम्भे में पड़ गए । राजा अजमल जी को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने दर्जी के घर एक सेवक को भेजा और उस दर्जी को बुलाया । जब राज दर्जी दरबार में पहुँचा,दरबार खचाखच भरा हुआ था । तब अजमल जी ने कहा कि हे राज दर्जी सच सच बताना कि तुमने उस कपड़े के घोड़े पर क्या जादू किया है ? सो मेरे कुंवर को लेकर आकाश में उड़ा ।
               राज दर्जी कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ता देखकर दंग रह गया और डर के मारे थर थर कांपने लगा और कहने लगा मैने काई जादू नहीं किया । दर्जी की बात का राजदरबार में कोई असर नहीं हुआ । क्योंकि दूसरा कारण था । जो घोड़ा दर्जी ने बनाया था । उसमें पुराने कपड़े लगाकर भगवान के साथ छल किया था । अजमल जी ने कहा यह सब तेरी करामात है इसलिये हुक्म है कि इस दर्जी को पकड़कर कारागृह में डाल दो और सिपाहियों को आदेश दिया कि जब तक रामा कंवर घोड़े से नीचे ना आये तब तक इस दर्जी को अंधेरी कोठरी से बाहर मत निकालना । तब दर्जी कोठरी में पड़ा रोने लगा और भगवान को सुमरन करने लगा ।
      इस प्रकार दर्जी ने भगवान को पुकारा तब भगवान श्री रामदेव जी ने दर्जी पर कृपा करी । क्योंकि भगवान हमेशा भक्तों के वश में हुआ करते हैं । जब दर्जी ने विनती की तब भगवान रामदेवजी घोड़े सहित काल कोठरी में गए । रामा राज कंवर के कोठरी में आते ही चान्दनी खिल गई और रामदेव जी ने दर्जी से कहा तुमने पुराने कपड़ों का घोड़ा बनाया इसलिये तुम्हे इतना कष्ट उठाना पड़ा । जा मैनें तेरे सारे पाप खत्म किये । तुमने घोड़ा बहुत सुन्दर बनाया और हरे रंग की रेशमी झूल ने मेरा मन मोह लिया । हे दर्जी आज से यह कपड़े का घोड़ा लीले घोड़े के नाम से प्रसिद्ध होगा । जहां पर मेरी पूजा होगी,वहीं पर मेरे साथ इस घोड़े की भी पूजा होगी ।

          बाबा रामदेव ने बचपन में अपनी माँ मैणादे से घोडा मंगवाने की जिद कर ली थी । बहुत समझाने पर भी बालक रामदेव के न मानने पर आखिर थक हारकर माता ने उनके लिए एक दर्जी (रूपा दर्जी) को एक कपडे का घोडा बनाने का आदेश दिया तथा साथ ही साथ उस दर्जी को कीमती वस्त्र भी उस घोड़े को बनाने हेतु दिए ।घर जाकर दर्जी के मन में पाप आ गया और उसने उन कीमती वस्त्रों की बजाय कपडे के पूर (चिथड़े) उस घोड़े को बनाने में प्रयुक्त किये और घोडा बना कर माता मैणादे को दे दिया । माता मैणादे ने बालक रामदेव को कपडे का घोडा देते हुए उससे खेलने को कहा, परन्तु अवतारी पुरुष रामदेव को दर्जी की धोखधडी ज्ञात थी । अतःउन्होने दर्जी को सबक सिखाने का निर्णय किया ओर उस घोडे को आकाश मे उड़ाने लगे । यह देख माता मैणादे मन ही मन में घबराने लगी उन्होंने तुरंत उस दर्जी को पकड़कर लाने को कहा । दर्जी को लाकर उससे उस घोड़े के बारे में पूछा तो उसने माता मैणादे व बालक रामदेव से माफ़ी माँगते हुए कहा की उसने ही घोड़े में धोखधड़ी की हैं और आगे से ऐसा न करने का वचन दिया । यह सुनकर रामदेव जी वापस धरती पर उतर आये व उस दर्जी को क्षमा करते हुए भविष्य में ऐसा न करने को कहा ।       

पूंगलगढ़ के पड़िहारों को और रतना राईका को परचा

Ratana Raika
रामदेव जी की बहिन सुगना का विवाह पूंगलगढ़ के कुंवर उदयसिंह पड़िहार के साथ हुआ था। इन पड़िहारों को जब ज्ञात हुआ कि रामदेव जी शुद्र लोगों के साथ बैठ कर हरी कीर्तन किया करते हैं तो इन्होने रामदेव जी के यहाँ अपना आना जाना बंद कर दिया तथा उन्हें हेय दृष्टि से देखने लगे । रामदेव जी ने अपने विवाह के उत्सव पर रतना  राईका को पूंगलगढ़ भेज कर सुगना को बुलाया, तब सुगना के ससुराल वालों ने सुगना को भेजने की बजाय रतना  राईका को कैद कर लिया । सुगना को इस घटना से बहुत दुःख हुआ और वह अपने महल में बैठी-बैठी विलाप करने लगी । रामदेवजी ने अपनी अलौकिक शक्ति से सुगना का दुःख जान लिया और पुंगलगढ़ की और जाने की तैयारी करने लगे । पूंगलगढ़ पहुँचने पर पड़िहारों के महल के आगे स्थित एक उजड़ स्थान पर आसन लगा कर बैठ गये । देखते ही देखते वह स्थान एक हरे-भरे बाग़ में तब्दील हो गया । कुंवर उदयसिंह ने जादू टोना समझकर सिपाहियों से तोप में गोले भर कर दागने को कहा । सिपाहियों ने ज्योंही गोले दागे वे गोले रामदेवजी पर फूल बनकर बरसने लगे । यह देखकर कुंवर उदयसिंह रामदेवजी के चरणों में जाकर गिर गया और अपने किए पर पश्चाताप करने लगा । रामदेवजी ने उन्हें अपने गले लगाकर माफ़ किया और अपनी बहिन सुगना एवं रतना  राईका के साथ विदा ली।