श्री रतना राईका का इतिहास
रत्ना रबारी का इतिहास
રત્નો રાયકો નો ઇતિહાસ
રત્ના રબારી નો ઇતિહાસ
બાબા રામદેવ પરણાવે
રતના રાયકા
रतना राईका का जन्म विक्रम संवत 1401 में चैत्र सुदी पूर्णिमा के दिन जोधपुर जिले (विकुकोर) के बिक़मकोर गांव में नताजी रायका एवं माता उगादेवी के घर पर हुआ। इनके दादा का नाम समल जी राईका था। शूरवीर रतना राईका अजमल जी के अतिप्रिय एवं विश्वासी शुतुर सवार दरबारी थे। जिस प्रकार श्री बाबा रामदेवजी को कृष्ण (द्वारकाधिश) का अवतार माना जाता है, उसी प्रकार रतना राईका को कृष्ण मित्र सुदामा का अवतार माना गया है। रतना राईका बाबा रामदेव जी के घनिष्ठ मित्र थे।पोकरण राजभवन में रतना साहसी एवं विश्वासी व्यक्ति था कि राजभवन की बहन-बेटियों को सम्मान और सुरक्षा के साथ उनके गंतव्य तक पहुचाना तथा राजा-महाराजाओं की चिट्ठी गुप्त संदेशो का आदान-प्रदान करने की अहम भूमिका रतना राईका की थी।
बाबा रामदेव जी के इतिहास के पन्नो में बताया गया है कि राजा अजमल जी ने बाबा रामदेव जी शादी का लग्न और नारियल देकर रतना राईका को अमरकोट के राजा दलजी सोढ़ा के यहाँ भेजा। रतना राईका वापस आकर अमरकोट का पूरा वार्त्तालाप राजा अजमल जी को सुनाया। राईका ने बताया कि रानी नेतलदे पैरों से चल नही पाती है और आंखों से देख नही पाती है, लेकिन इतनी सुंदर है मानो कृष्ण की रुक्मणि हो। यह बात सुनकर रामदेव जी मुस्कराये और शादी के लिए राजी हो गए।
बहन सुगना बाई को लेने पूंगलगढ़ जाना
रामदेव जी के विवाह की तैयारी चल रही थी, बहिन सुगना को शादी में लाने के लिए हल्दी चावल और कुकूपत्री देकर अपने प्रिय सखा रतना राईका को पूंगलगढ़ के पड़िहारो के पास भेजा। रामदेव जी छुवाछुत को नही मानते थे, उनका सभी के वर्गों के साथ उठना-बैठना था। इस बात को लेकर पूंगलगढ़ के पड़िहार रामदेव जी से घृणा करते थे।
रतना राईका अपनी पवनवेग से चलने वाली सांडणी (ऊँटनी) पर बैठकर पूंगलगढ़ जा पहुंचा। पूंगलगढ़ के उदयसिंह पड़िहार ने रतना को आने का कारण पूछा तो रतना राईका ने बताया
गढ़ पोकरण सूं आयो, रामदेव जी रो संदेशो लायो।
रायका घर जन्म पायो, रतनो रायको नाम म्हारो।
मैं बाई सुगना ने लेवण ने आयो।।
अर्थात रतना राईका मेरा नाम है में गढ़ पोकरण से आया हूँ और रामदेव जी की शादी का निमंत्रण देने तथा सुगनाबाई को लेने को आया हूँ।
इतना सुन भरी सभा में उदयसिंह पड़िहार व्यग्य कसने लगता है, और रामदेव जी को नीचा दिखाने की कोसिस करता है। यह सब रतना राईका से सहन नही होता है, रतना राईका गुस्से में उदयसिंह पड़िहार को समझाने लग जाता है कि आपकी भलाई इसी में है कि आप सुगनाबाई को मेरे साथ भेज दीजिये, वरना इसका परिणाम बुरा होगा। इस बात को सुनकर पड़िहार आग-बबूला हो जाता है, रतना राईका को कारागार में डाल देता है। जब सुगनाबाई को पता चलता है भाई रतना को कारागार में डाल दिया है, तब वह वीरा रामदेव को रोती हुई याद करती है-
धुप ने धुपाण बाई लिया हाथा मे,चढ़िया झरोखा माई।।
झरोखे चढ़ी ने बाई हेलो परो राल्यो, सुणजो राम भाई।।
बडा विरम देव छोटा धणी रामदेव द्वारका रा नाथ केवाई।।
आप तो नी आया वीरा रतना ने मेलियो लिले असवार होई।।
रतना राईका री वार चढ़े वेगा आई।।
इधर रतना राईका अपने सखा रामदेव जी को याद करता है।
उधर बाबा रामदेव जी को सपना आता है, कि बाई सुगना और रतना राईका विपदा में है।
रामदेव लीले घोड़े पर सवार होकर पूंगलगढ़ पहुँच जाते है। पूंगलगढ़ के पड़िहार उन पर तीर कमान, तोप से हमला करते है, लेकिन जैसे ही तीर रामदेव जी के समक्ष आता है, उसकी फूल माला बनकर गले मे डल जाती है, इस अलौकिक शक्ति को देखकर पड़िहार अपने हथियार डाल देते है, डर के मारे पीछे खिसक जाते है। रामदेव जी से क्षमा याचना की भीख मांगने लगते है। बाबा रामदेव जी उन्हें क्षमा कर देता है।
खटके ताला टुटीया।
जटके पडिया जंजीर।।
रतनो हाजर हो गयो।
थाने रगं हो रामापीर।।
रामदेव जी अपने मित्र रतना राईका को कारागार से निकालकर सुगनाबाई के साथ वापस पोकरण पहुंच जाते है।
आज शुरवीर रतना राईका का ऐतिहासिक मंदिर अभी हाल ही में विरमदेवरा के पास मेहराराम भाड़का के अथक प्रयासों से तथा समाज के भामाशाहओ की सहायता से बनाया गया है, जो रामदेवरा जाते वक्त रास्ते मे आता है। यह मंदिर रामदेवरा से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ ठहरने की उचित व्यवस्था है।
शूरवीर रतना राईका का मंदिर रबारी/राईका/देवासी समाज के लिए एक दर्शनीय स्थलों में से एक है।
जय रामदेव बाबा जय रतना राईका
1 टिप्पणियाँ
बहुत अच्छी जानकारी।। पर रतना जी रायका के बारे में सबको जागरुक करने वाले भाई साहब राजाराम जी आसावरा जिला चित्तौड़गढ़ का नाम लिखना चाहिए उन्होंने लगातार समाज के बड़े बुजुर्गो व नेताओं सब को जागरूक किया आखिरकार मेंराराम जी को भी राजाराम जी ने बताया फिर उन्होंने इस काम को पूरा कराया बहुत बहुत आभार ऐसे भामाशाहों का
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