Save Camel 

सेहत के लिए रामबाण दवा है:-  

 ऊंटनी का दूध, जिसके सेवन से ही कुछ महीनों में ही चमत्कारी फायदा मिलता है, और काया कल्प होती है। ऊंटनी के दूध में शर्करा, प्रोटीन, केल्शियम, कारोबोहाइड्रेट, लैक्टिक अम्ल, विटामिन ए, विटामिन ई, विटामिन बी 2, विटामिन सी, सोडियम, फास्फोरस, पोटेशियम, जिंक, कॉपर, मैग्रीज, आयरन, फाइबर जैसे बहुत सारे तत्व की भरमार होती है , जो हमारे शरीर को निरोगी, ताकतवर एवं सुन्दर बनाते है। इस दूध का सबसे बड़ा फायदा है यह दूध डायबिटीज के लिए रामबाण का कार्य करता है। चिकित्सा वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययनों से पता चला है कि ऊंटनी के दूध में बड़ी मात्रा में  इंसुलिन होने के कारण इसके दूध का सेवन करने वाला कभी भी मधुमेह से ग्रसित नहीं होता । 


भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) सहित अन्य संस्था के माध्यम से पिछले लगभग 30 वर्षों से चिकित्सा क्षेत्र में घातक बीमारी कैंसर, एड्स तथा मस्तिष्क रोग सहित अनेक बीमारियों से संबंधित शोधकर्ता उज्जैन के डॉ. नरेश पुरोहित ने हाल ही में ‘व्हाय रैका ट्रइब नॉन डायबिटिक’ शीर्षक पर किए गए शोध के बाद यह जानकारी दी. राष्ट्रीय सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम  के सलाहकर डॉ. पुरोहित ने राजस्थान और मध्य प्रदेश  क्षेत्र की राईका (रबारी) जाति पर किए अपने शोध से उजागर किया कि ऊंटनी के दूध में बड़ी मात्रा में ‘इंसुलिन’ पाया जाता है. आईसीएमआर प्रोजेक्ट के तहत जनवरी 2012 से जनवरी 2014 तक 15 हजार राईका (रबारी) जाति के लोगों पर किए गए शोध से साफ हो गया कि राईका जाति में मधुमेह रोग नहीं पाया जाता है क्योंकि इस समुदाय के लोग ऊंटनी के दूध का सेवन करते हैं, उन्होंने बताया, राईका जाति में मात्र 0.4 प्रतिशत मधुमेह रोग के मरीज पाए गए, क्योंकि इस जाति के लोग प्रतिदिन ऊंटनी के दूध का सेवन करते थे जबकि अन्य जाति के लोगों में चार प्रतिशत मधुमेह मरीज पाए गए। इस इंसुलिन में मौजूद प्रोटीन को निकालने और उसे पाउडर एवं दवा का रूप देने के लिए अनुसंधान जारी है। 

 

राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र बीकानेर में हुए शोध से इस बात को सही पाया गया की ऊंटनी का दूध के सेवन से डायबिटीज़ जैसे घातक रोगियों के लिए यह दूध रामबाण दवा से कम नहीं है, कुछ ही महीनो के सेवन से डायबिटीज़ को जड़ से खत्म कर देता है और साथ ही पंजाब के फरीदकोट में स्पेशल चिल्ड्रन एकेडमी में तीन महीने लगातार 10 मंदबुद्धि बच्चो पर किये गए शोध  से पता चला की सुबह-शाम 300 एमएल दूध के सेवन से इन सभी की बिमारी ठीक हो गयी और अन्य मंद बुद्धि बच्चो की तुलना में ज्यादा ग्रोथ पाई गयी। 
Bikaner Camel Milk experiment डॉक्टरों एवं वेज्ञानिको ने पाया ऊंटनी के एक लीटर दूध में लगभग 52 यूनिट इंसुलिन की मात्रा होती है, अन्य पशुओं के दूध की मात्रा से अधिक है,  इंसुलिन शरीर में प्रतिरोधक क्षमता तैयार करता है  जो डायबिटीज मधुमेह जैसी बिमारी को ठीक करता है ।
 राष्ट्रीय उष्ट्र अनुशंधान केंद्र बीकानेर से 40 लीटर ऊंटनी का दूध पिछले डेढ़ वर्ष से रोजाना  बाबा सेंटर फॉर मेंटली रिटायर्ड चिल्ड्रन पंजाब को ये दूध जा रहा है । एनआरसीसी के प्रिंसिपल साइंटिस्ट राघवेंद्र सिंह बताते हैं कि ऊंटनी का यह दूध इन स्पेशल बच्चों की जिंदगी नए सिरे से संवार रहा है।
दिमागी रूप से कमजोर बच्चो के लिए यह दूध बहुत फायदे बंद है। - ऐसा नहीं है कि एनआरआरसी से दूध सिर्फ पंजाब ही जा रहा है। सिंह का कहना है बेंगलुरू, चेन्नई, मुंबई, हैदराबाद जैसे शहरों से भी मां-बाप यहां दूध लेने के लिए आ रहे हैं। वे एक से तीन माह का पैक्ड दूध ले जा रहे।
- रिपोर्ट में दावा किया गया कि कई स्पेशल बच्चे तो अब सामान्य बच्चों की तरह जिंदगी जीने लगे हैं।

कैमल मिल्क में होता है खास तरह का प्रोटीन

- इस दूध में एक खास तरह का प्रोटीन है जो अन्य दूध में नहीं होता। ऊंट का आहार नीम, बबूल, आंक, बाखड़ा जैसी झड़ी बूटियां हैं। ऐसे में इसका दूध भी आयुर्वैदिक औषधि के रूप में काम कर रहा है।
- एनआरआरसी डायरेक्टर डॉ. एन.वी. पाटिल कहते हैं कि बच्चों की खुशियां लौटाने से बेहतर रिजल्ट और क्या हो सकता है।
- बाबा फरीद सेंटर फॉर स्पेशियल चिल्ड्रन के डायरेक्टर डॉ. पृथ्वीपाल कहते हैं कि बच्चों की बदलती जिंदगी में कैमल मिल्क को पूरा क्रेडिट जाता है।

Camel Milk Profit Raika Rabari

केस-1

दिल्ली का राजेश, महज 4 साल का। ऑटिज्म का शिकार। न सुनता था, न ठीक से आई कांटेक्ट। एनीमिया भी। इंजीनियर पिता की परेशानी पूछो ना। मां ने बेटे के लिए जॉब छोड़ दी। चार माह पहले डॉक्टरों की निगरानी में केमल मिल्क के साथ नया डाइट चार्ट बना। करीब 50 से 60% सुधार।

केस-2

महाराष्ट्र का आदर्श 12 साल का है। हाइपर, कमांड फॉलो न करना जैसी परेशानी का मारा। अपने ही कपड़े फाड़ता। देशभर में कई तरह के इलाज के बाद 6 माह पहले केमल मिल्क का इस्तेमाल शुरु हुआ। अब आदर्श के स्वास्थ्य में काफी सुधार हो रहा है।

केस-3

कुछ माह पहले तक 8 साल का विभोर जाने-अनजाने में तोड़फोड़ कर देता। ज्यादातर वक्त चुप सा रहता। दिमागी हालात ठीक नहीं। केमल मिल्ट ट्रीटमेंट ने असर दिखाना शुरु किया तो अब डांस भी करने लगा है। बिजनेसमैन पिता की इस संतान ने अब स्कूल भी जाना शुरू कर दिया है।

केस-4 

राजस्थान के टोंक गांव में रहने वाले हनुमान  पिछले तीन साल से मधुमेह से पीड़ित थे। हजारों रुपये उनके इलाज में खर्ज हो गये थे जिसका आंकड़ा लाखों तक पहुंचने वाला था। तभी उनके दोस्त ने उन्हें ऊंटनी का दूध ट्राय करने बोला। हनुमान ने सोचा जब इतने पैसे और इतनी दवाईयां ट्राय कर ही चुके हैं तो ये उपाय भी अपना ही लेता हूं। ये सोचकर हनुमान  ने ऊंटनी का दूध पीना शुरू किया। अभी उसे ऊंटनी का दूध पीते हुए एक महीने ही हुए थे कि उनका शुगर कंट्रोल हो गया और एक महीने बाद ही उनकी डायबीटिज पूरी तरह से ठीक हो गई। आज हनुमान की डायबीटिज और मोटापा पूरी तरह से कंट्रोल में है और वो पहले की तरह हर चीज खा-पी रहे हैं और मेहनत कर रहे हैं। जबकि डायबीटिज और दवाई लेने के दौरान उसे कई चीजों से परहेज करनी पड़ती थी और वो ज्यादा शारीरिक क्रियाएं भी नहीं कर पाता था। आज वो पूरी तरह से तंदुरुस्त है और पहले से अधिक मेहनत करता है।
ऊंटनी का दूध मधुमेह जैसी जटिल बीमारी ठीक करने के अलावा अन्य कई सारी बीमारियां भी ठीक कर देता है। इसका दूध लगातार एक से दो महीने तक पीने से शरीर की कई सारी बीमारियां ठीक हो जाती हैं।

आइए इस लेख में जानें ऊंटनी के दूध के फायदे और उनसे दूर होने वाली बीमारी।

 Untni ke dudh ke fayde
रिसर्च में लगे डॉक्टर वैज्ञानिकों ने 41 बच्चो पर कैमल मिल्क का नियमित प्रयोग किया जिसके बहुत ही बेहतरीन परिणाम निकलकर सामने आये। नियमित  ऊंटनी के दूध पिने से बच्चो का दिमाक बढ़ता है, मानसिक बीमरिया  दूर होती है, त्वचा पर निखार आता है, बच्चो को कुपोषण से बचाता  है, जीवन में कभी शुगर जैसी बीमारी नहीं होती है, शरीर को बलशाली बनाता है, पीलिया, फेटी लीवर, ड्राप्सी, एड्स जैसी खतरनाक बीमारी में यह भी यह इम्यूनो सिस्टम को मजबूत बनाए रखने में काफी कारगर है।

Shrimati Menka Gandhi Sanjay Gandhiअभी हाल ही में ही श्रीमती मेनका संजय गांधी जी का अखबार में "सेहत के लिए फायदेमंद है ऊंटनी का दूध" नामक शीर्षक से आर्टिकल आया जिसमें श्रीमती गांधी ने लिखा मेने कभी नहीं सोचा था की एक दिन ऐसा भी आएगा जब में दूध पिने की सिफारिश करुँगी और आज में ऊंटनी के दूध पिने की सिफारिश कर रही हूं। 
एफएसएस एआई  ने   ऊंटनी का दूध खाने  योग्य जैव उत्पादों  की सूचि में शामिल  कर  लिया है ।  खाद मानक ब्योरो  के कुछ बुद्धिजीवो ने लिख दिया  की  ऊंटनी के दूध में  3.0 प्रतिशत  वसा  होती है , जबकि सच्चाई  यह है  कि  हमारे देश में ऊंट खुले मैदानों में चरते है , इसलिए उनके दूध में  वसा की मात्रा 1.5  से  2.5  प्रतिशत तक ही होती है ।  हमारे देश में  2008  में  ऊंटो  की संख्या  10 लाख थी , जो  2012 में 4 लाख होकर अब  1  लाख से भी कम  रह गयी है ।  जिसमे सबसे ज्यादा ऊंट अकेले राजस्थान में हैं।  हम  ऊंटनी के दूध को खरीदने लगे तो ऊंटो का संरक्षण तो होगा ही साथ पशुपालक समाज को आय भी होगी ।
श्रीमती  मेनका गांधी:-   केंद्र में महिला एवं बाल विकास विभाग में मंत्री है, एवं पर्यावरणविद और जिव जंतुओं के अधिकारों के लिए संघर्षत है। 

अभी यहां स्थापित हैं ऊंटनी के दूध की डेयरियां : 

फिलहाल सऊदी अरब, मेरिटेनिया, केन्या, ऑस्ट्रेलिया में ऑर्गेनाइज्ड वे में ऊंटनी के दूध की चुनिंदा डेयरियां स्थापित हैं। राज्य के पशुपालकों को भी अब आगे आना चाहिए जिससे ऊंट प्रजाति को और बढ़ाया जा सके। राज्य में बीकानेरी, जैसलमेरी, मेवाड़ी और कच्छी नस्ल के ऊंट हैं। इंटरनेशनल मार्केट में अच्छी रेट से हमारा दूध बिकने की उम्मीद बनी है। 


पाली. ऊंटपालन भारत जैसे देश के लिए सिर्फ रोजगार नहीं, बल्कि एक संस्कृति है। इसे बचाने के लिए सरकारी मदद जरूरी है तभी ऊंटों की तेजी से गिरती संख्या को रोका जा सकता है। ऊंटपालन को बढ़ावा देने के लिए यह भी जरूरी है कि इसे लाभ का व्यवसाय बनाया जाए, जिससे युवा पीढ़ी इसमें रुचि ले सके।  ये बात पिछले 20 सालों से पाली जिले में रहकर ऊंटपालन पर रिसर्च व बढ़ावा देने का कार्य कर रही डॉ. इल्से कोहलर रोलेफ्शन ने राजस्थान पत्रिका रिपोर्टर रवि कुमार सिंह से बातचीत में कही। पेश है इसके कुछ अंश।

युवाओं का रुझान बढ़ाना होगा

इल्से कोहलर बताती हैं कि राजस्थान में मुख्य रूप से ऊंटपालन कर रहे राईका और देवासी समाज के लोग भी पिछले कुछ सालों में ऊंटपालन से विमुख हो रहे हैं। वे बताती हैं कि इस समय इस समाज के पुराने लोगों के कारण ही ऊंटपालन की परंपरा जिंदा है। सरकार अगर वाकई ऊंटपालन को बढ़ावा देना चाहती है तो इस व्यवसाय के प्रति युवाओं में रुचि विकसित करनी होगी, जो कि इसे लाभदायक बनाए बिना संभव नहीं होगा।

चारे की समस्या है सबसे बड़ी

ऊंटपालन में यह सबसे बड़ी समस्या इस समय चारे की कमी को बताती हैं। इनका कहना है कि पिछले कुछ सालों से वन विभाग द्वारा ऊंटों को जंगल में छोडऩे पर रोक लगा दी गई है, जिससे ऊंटपालकों के सामने चारे की समस्या गहराने लगी है। बरसात के दिनों में तीन से चार महीने तक ऊंटपालकों को चारे की व्यवस्था करने में अत्यधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। बाहर के  देशों से तुलना के सवाल पर उनका कहना था कि ऊंटपालकों के खराब हालात ईरान जैसे देश में भी हैं।

जानें... पाली की ऊंटनी का दूध जर्मनी के लोगों को कैसे भाया, जर्मनी में है इस दूध का क्रेज

दुग्ध व्यापार है समाधान

ऊंटपालन को लाभदायक बनाने के सम्बन्ध में डॉ. इल्से का कहना था कि कैमल मिल्क व्यापार इसका समाधान हो सकता है। वे कहती हैं कि कैमल मिल्क के मेडिसीन वैल्यू से अब सभी परिचित हैं, एेसे में जिन जगहों या देशों में कैमल नहीं पाए जाते, वहां भी इसकी मांग बढ़ी है। विदेशों में तो इसे मेडिकल वैल्यू के साथ ही नए पन और टेस्ट के लिए पसंद किया जा रहा है। वहां के खिलाडि़यों में कैमल मिल्क की जबरदस्त डिमांड है और वे भारतीय मुद्रा के हिसाब से 500 से 800 रुपए प्रति लीटर तक खरीदने को तैयार हैं।
प्रोफाइल
नाम: डॉ. इल्से कोहलर रोलेफ्शन
पिता: प्रोफेसर बिथर्ड कोहलर
देश: जर्मनी (हनोवर)
शिक्षा: हनोवर यूनिवर्सिटी जर्मनी से पीएचडी (1981),
कार्यानुभव :  एजंग्ट प्रोफेसर इन एंथ्रोपोलॉजी (सैनडियागो यूनिवर्सिटी अमेरिका, 1985-1992)
मुख्य किताबें: कैमल डिजिज (2000), कैमल्स इन कुंभलगढ़ (2012), कैमल कर्मा (2014)
अवार्ड: रोलेक्स अवार्ड (2002)

सदियों  से ऊंटो संरक्षण  करती आ रही  ऊंट पालक राईका जाति  की  समस्या  को सरकार को समझना  चाहिए, सरकार को इस विषय में गंभीर होना चाहिए ।   
राज्य पशु की संख्या को बढ़ाने व उसे फायदे का सौदा बनाने के लिए जिले के सादड़ी स्थित लोकहित पशुपालक संस्थान ने ऊंटनी के दूध को संरक्षित करने का  कार्य शुरू किया है। राज्य पशु के बाल, दूध व गोबर से भी कई तरह के उत्पाद निमिज़्त किए जा रहे हैं। विदेशों में खासकर जर्मनी और अमेरीका में ऊंटनी के दूध का क्रेज बढ़ा है। संस्था से जुड़ी जर्मनी की इल्से कोहलर रोलेफ्सन विदेशों में भी इसका प्रचार-प्रसार कर रही हैं। दूध से आइसक्रीम, चीज, साबून समेत कई तरह के अन्य उत्पाद क्षेत्र में ही बनाने में सफलता हासिल की है। साथ ही ऊंट के गोबर (मिंगड़ा) से पेपर शीट व ऊंट के बाल से शाल व कार्पेट भी तैयार कर क्षेत्रीय पशुपालकों को फायदा पहुंचा रहे हैं। वर्तमान  में छह सौ लीटर दूध संरक्षित कर रहे हैं। इस तरह से इस दूध को दो से तीन महीने तक संरक्षित किया जा सकता है।
ये उत्पाद बनाए
मिंगणा से पेपरशीट जो डायरी और नोटपैड बनाने में काम आती है। ऊंट के बालों से शॉल व कार्पेट भी बनाया जा रहा है। ऊंटनी के दूध में कोकोनेट ऑयल व मुलतानी मिट्टी के मिश्रण से मिल्क शॉप भी बना रहे हैं। दूध को डिब्बे में पैक कर फ्रीज करने के बाद दूसरे शहरों में पहुंचा रहे हैं।

इन्होंने कहा
राज्य पशु के लिए 18-19 साल से संस्था काम कर रही है। हालिया निर्मित साबून, चीज और फ्रीज मिल्क की मांग अच्छी है। निश्चित ही आगामी साल भर में संस्था एक हजार लीटर से ज्यादा दूध संरक्षित करेगी।
हनुवंत सिंह, निदेशक, लोकहित पशुपालक संस्थान
संस्था द्वारा दूध 60 रुपए लीटर व ऊंट के बाल भी 60 से 70 रुपये किलो में खरीदे जाते हैं। 15 से 20 लीटर दूध मेरे यहां से भी संस्था लेती है। मेरे पास अभी 40 ऊंट बचे हैं, जो संस्था द्वारा प्रोत्साहन देने के कारण ही संभव हो पाया है।
भंवरलाल राईका, ऊंटपालक, मालारी

 ऊंट पालक राईका जाति की  मुख्य समस्या

The main problem of camel-keeping Raika, Rabari, Dewasi, community

Oont Palak Raika, Rebari, Dewasi Samaj ki Mukhya Smasya   
मेरी कलम से :-
 1.  खर्चा ज्यादा आय कम:- सबसे बड़ी समस्या  ऊंट पालने वाली राईका समुदाय के लिए ऊंट पालने में ख़र्च ज्यादा आता है और आय न के बराबर है। राज्य से बाहर ऊंट के निर्यात पर प्रतिबंध के कारण ऊंटों की खरीद-फरोख्त नहीं हो रही। स्थिति यह है कि 50 हजार की कीमत वाले ऊंट को मात्र 10 हजार रुपए में बेचना पड़ रहा है।
 2. चरागाहों की कमी :- चरागाहों एवं जंगलो की कमी के कारण भी इसका सबसे बड़ा कारण है। ऊंट पालक जाति राईका के सामने सबसे बड़ी चुनोती है ऊंटों को खाने के लिए चारा नहीं मिलने से ऊंटपालकों के समक्ष भी रोजी रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है। आज दिन प्रतिदिन घट रहे चारागाह भी मुख्य समस्या बनी हुई है सरकारी जंगलो में ऊंटपालको को घुसने नहीं दिया जा रहा है, और उनके साथ दुर्व्यहार करते है। सरकार को सोचना चाहिए ऊंट पालक अपने ऊंट कहाँ चरायेगे, सभी बीहड़ जंगल ऊंटपालको के लिए खुले रहने चाहिए और ना उनसे किसी प्रकार का पैसा लेना चाहिए। पशुओं के लिए सरकार को चारे का प्रबन्ध करना चाहिए
3.चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो :-  आज सेंकडो ऊंट बिमारी के कारण मारे जाते है, उनको समय पर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं होती है,   मोबाइल चिकित्सा सुविधा ऊंटपालको के लिए सरकार को करनी चाहिए। ऊंटो  के लिए दवाई मुफ्त करनी चाहिए, सरकार ऊंट पलकों के लिए मुफ्त दवाई दे रही है लेकिन  दवाई ऊंटपालको तक नहीं पहुँच पाती है।
4. सरकारी योजनाओ का सही से लागु हो:- सरकार ने पशुपालकों के हित के लिए अनेक योजना चला रखी है, लेकिन पशुपालक भाई अशिक्षित होने के कारण योजनाओ का लाभ नहीं उठा पा रहे है, जेसा की सरकार ने पशुधन बिमा योजना, ऊंटनी के बच्चे के जन्म पर 10000 रूपये, ऊंटनी के दूध को फ़ूड एक्ट में सामिल करना आदी योजनाये । सरकार को इन योजनओ को व्यापक स्तर पर प्रचार करना चाहिए, ताकि पशुपालकों तक योजनाओं की जानकारी पहुँच सके, और योजना से प्रेरित हो सके। योजनाओ की प्रकिया में सरलीकरण करना चाहिए जिससे पशुपालको के समय एवं धन की बचत हो। 

5. सरकारी डेयरी का विस्तार हो:- पशुपालक ज्यादातर ऊंटो जंगलो में रखते है वहां से दूध इक्कठा करने के लिए सरकार को प्रयास करना चाहिए, और प्रत्येक तहसील स्तर पर डेयरी होनी चाहिए, जिससे पशुपालक भाई दूध को आसानी से बेच सके दूध की कीमत बढ़ानी चाहिए। 
हिन्दुस्थान में राईका जाति ने ऊंट सरंक्षण में अहम भूमिका निभाई है, ऊंट सरंक्षण में पूरा क्रेडिट इस समुदाय को जाता है, इसलिए दूध के पेटेंट के लिए दूध पर मार्को राईका  सुमदाय के नाम से जारी करना चाहिए। 
और भी  अनेक समस्या है  जिनका जिक्र में अगली पोस्ट में करूँगा । 
सौजन्य से - राजस्थान पत्रिका , दैनिक भास्कर , संदीप राईका  झुंझुनू