रायका वीर हरमल देवासी
हरमल राईका
हरमल देवासी की कथा
हरमल राईका का इतिहास
રાયકા વીર હર્મલ દેવાસી
हरमल देवासी आलां रो कंवर भीमो रो भाणजो माता वीसोत रै अवतार जसवत रो डीकरो।
હર્મલ રાયકાનો ઇતિહાસ
પબુજીનો ઇતિહાસ
-ऐसा कहा जाता है कि पहले राती-धोळी (रातळ भूरी) ऊंटनियो (सांडे) की नस्ल मारवाड़ में नहीं होती थी। इस नस्ल को मारवाड़ में लाने और पता लगाने का श्रेय वीर पाबू सरदार हरमल जी / हड़मल जी राईका को जाता है। हरमल राईका गुरु गोरखनाथ के शिष्य थे। हरमल राईका की माता का नाम भवणी था और पिताजी का नाम जसवत आल और उनकी पत्नी का नाम कालरदे था। देवासी जाति मे गोत्र आल वशज में थे। उनका ननिहाल भीम गोत्र में था। श्री पाबूजी राठौड़ के पांच प्रमुख साथी सरदार थे सरदार चांदो जी, सरदार सावंत जी, सरदार हरमल राईका, सरदार डेमा जी एवं सलजी सोलंकी। इन पर पाबूजी को अटूट विश्वास था, गोरक्षा में पाबूजी के साथ मिलकर अहम भूमिका निभाई थी।
कोलुमंड के राजा श्री पाबूजी राठौड़ के दरबार में हड़मल देवासी शुतुरसवार ईमानदार और वफादार सिपाही थे।
गोगाजी चोहान पाबूजी के मित्र थे। एक दिन गोगाजी चोहान को एक बाग में एक खूबसूरत लड़की नजर आई। पाबूजी से पूछा यह कौन है तो उन्होंने कहा कि मेरे भाई बूड़ाजी की बेटी केलनबाई है। गोगाजी ने पाबू जी से केलनबाई से शादी का प्रस्ताव रखा। पाबूजी ने कहा यौं तो इसकी मां मेरा कहना नहीं मानेगी तुम सांप बनकर इसे डसो, फिर मैं बन्दोबस्त कर लूंगा। गोगाजी चोहान सांप बनकर चंपा के दरखत पर बैठ गया। जब केलन अपनी सहेलियो के झुरमुट में टहलती टहलती उधर गई तो गोगाजी ने उसको काट खाया। सहेलियां रोती हुई उसकी मां के पास गई। उसने पाबूजी से कहलाया कि तुम्हारे भाई तो घर नहीं है, केलन बाई को सांप ने काटा है, जल्दी उसका जतन कराओ। पाबूजी ने कहा इसका इलाज यही है कि गोगाजी चोहान का नाम लेकर दूध का छींटा डाल दो, केलन अच्छी हो जावेगी। मगर इसकी शादी गोगाजी चोहान से करनी पड़ेगी। बूड़ाजी की ठकुरानी ने ज्योंही गोगाजी का नाम लेकर दूध का छींटा डाला, केलन फौरन उठ खड़ी हुई। फिर उसकी शादी गोगाजी चोहान से की गई। जब हथलेवा छूटने का वक्त आया तो उस की मां ने पाबूजी से कहलाया कि भतीजी को कुछ दहेज़ दो तो उन्होंने कहा कि मैं लंका की राती-धोळी सांडे दूंगा। उस वक्त कोई इस नस्ल के जानवर का नाम भी नहीं जानता था। सभी को अचम्भा हुआ कि यह जानवर कैसा होगा! जब केलण सासरे गई तो उसकी दोरानियां-जिठानियां हंसी किया करती थीं कि तेरे डायजे(दहेज़) की सांडे (ऊंटनिया) हमारे बगीचे उजाड़े देती है। आखिर केलण ने अपने चाचा को लिखा कि मैं सांडों के वास्ते रोज ताने सुना करती हूं। पाबूजी ने दरबार करके सांडनियों के वास्ते बीड़ा(प्रस्ताव) डाला। बड़े-बड़े सूरमां सरदार मोजूद थे लेकिन किसी को बीड़ा उठाने की हिम्मत न हुई। तब हड़मल राईका ने प्रस्ताव को स्वीकार किया। हरमल देवासी पवन वेग से चलकर सिंध (पाकिस्तान) में जा पहुंचा वहा पर ऊंटनियो की नस्ल का पता लगाया। कोलुमंड दरबार पहुंचकर सारी गुप्तचर सूचना वहां की पाबूजी राठोड को बताई। उस समय यह नस्ल ऊंटनी की सिंध के मुसलमान के पास थी। दरयाई घोड़ी पर सवार होकर पाबू जी और ऊंट सवार वीर हड़मल राइका तथा सेना के साथ लंका (सिंध में लंकथळी नाम एक इलाका है वहां की सांडनियां कदीम जमाने में बहुत उमदा होती थीं) पर चढ़ाई कर दी, युद्ध में मुसलमान को पराजीत करके। श्री पाबूजी और वीर हड़मल राईका राती-भूरी ऊंटनियो की नस्ल शिव बाड़मेर-जोधपुर में लेकर आये उनकी नस्ल मारवाड़ में फैली। फिर पाबूजी ने घर आकर वह सांडनियों केलन के पास भेज दीं। केलण ने कुछ तो अपनी दोरानियों-जिठानियों के बगीचों में छोड़ दीं और बाकी के वास्ते कहा कि- ‘‘आधी तो खाबड़ के खेजड़ों में और आधी मारवाड़ के धोरों में छोड़ दो।’’ उस दिन से धोळी राती सांडनियों की औलाद मारवाड़ में फैली है।
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