क्यों दी बच्चों को सजा, बाल विवाह से लो बचा 

Save Childhood



बाल विवाह एक समाज के लिए है अभिशाप 

Why given children punishment, take away from child marriage
जब तक मौका मिल रहा पढ़ लिख लो बाद में तो शादी हो जानी है ... 
जब भी कोई अच्छा रिश्ता आया तो हम नही रुंकेंगे कर देंगे शादी 
अब लड़का तो हो नही कि बैठाये रखेंगे घर मे यही सुनते बड़े हुए हम अपने समाज और आस पास के माहौल में। पढ़ाई में जरा भी मन नही लगता तो सोचते चलो विवाह ही कर दो मजे करेंगे। मजे वाली कोई तस्वीर तो नही थी पर लगता था वही अंतिम ठाँव और ठहराव है। फिर वही से शुरू होगी जिन्दगी.....
कोई तीन विषय ले कर पढ़ना था। आगे जिंदगी ढेर विषय पढ़ाने वाली थी। सब में आनर्स चाहिए। बात बीती आखातीजो के शुभ मुहूर्त में हुए एक विवाह का हैं। उस रात एक बड़े आँगन में एक मंडप सजा था, तोरण द्वार बना हुआ था मुख्य द्वार पर बाहर कुछ पानी के ड्रम भरे हुए थे जो प्लास्टिक के थें शायद पानी पीने और खाने के बाद हाथ धोने की वयवस्था थीं सब देखते हुए में अंदर की तरफ प्रवेश हुईं अचानक सामने से एक छोटी सी लड़की आई जिसके लंबे बाल जिसमें दो चोटिया बनीं हुई थीं जिसमें लाल रीबन लगे हुए थे चेहरे पर मुस्कान और मासूमियत साफ झलक रही थी और मुझसे टकरा कर गिर गई गिरते हीं वो बिजली की फुर्ती जैसे उठीं और हंसते हुए अपने कपड़ो पर हाथ झटकते हुए साफ करते हुए दौड़ पड़ी शायद बच्चों के साथ पकड़ा पकड़ी का खेल खेल रही थी फिर हम वहां टेन्ट के नीचे बिछाई गई दरियो के ऊपर ना होकर पास से आगे बढ़ रहे थे पाँव में चप्पल जो थीं उसी समय एक सहेली ने बताया कि आज इस बच्ची का हीं विवाह हैं ,,.पर वो कितनी छोटी थी लडकी बाल विवाह सा याद आता है सब या यु कहे की बालविवाह हीं था ..अचानक मस्तिष्क में चिंता रूपी किले मन मस्तिष्क को छलनी करने लगीं असहमति रुपी कांटे पैरों में मानो ऐसे चुभ रहें थें जैसे मुझे आगे बढ़ने से रोक रहे हो। बार बार वो मासूम हंसी मेरे कानों में गूंज रही थीं। इधर उधर की बातें और कुछ लोगों से मिलने के बाद भी मेरी खामोशी चिंता हटने का नाम नहीं ले रही थीं कब शाम हुई चहल पहल बढ़ी पता हीं नहीं चला। हलवाई के आस पास कुछ लोग खड़े थे कोई गपशप कर रहे ओर कुछ लोग हलवाई को सामान कि उपलब्धता और बनने के बारे में पुछ रहें थें शायद वो यही लोग थें जिन पर खाने कि वयवस्था और हलवाई कि जिम्मेदारी थीं सब अपने हिस्से आये हुए को बड़ी जिम्मेदारी से कर रहे थे और कुछ बुजुर्ग जो एक छाया के लिए लगायें हुए टेन्ट के नीचे हुक्का बीड़ी खींचते हुए चर्चा कर रहे थे शायद बुजुर्ग अपने जमाने के खान पान तंदुरुस्ती और बीच बीच में देशावर यानी रेवड़ भेड़ बकरियों कि बातें कर रहे थे ज्यादा कुछ सुन नहीं पा रहीं थीं रोशनी के लिए लगें जनरेटर कि आवाज कि वजह से उनकी आवाज मेरे कानों में दस्तक देने से पहले ही दम तोड़ रही थी  सब लोग खुश दिख रहें थें किसी के माथे पर बालविवाह कि शिकन चिंता प्रतीत नहीं हो रही थी। उस पुरे खुशनुमा माहौल में अगर उदास थीं तो सिर्फ में। दुसरी  तरफ  बारात के स्वागत में घर के लोगों में भगदड मची थी ....बाराती आ गए,, बारात आ गई ..भाई कहे जाने वाले लडके अपनी उम्र से ज्यादा काम करते हुए दिखाई दे रहें थें .बालटी कड़ाई टेन्ट हलवाई  चाय खाना दरी ...जैसे हंगामा ..इन सब में घर में जुटी हुई थीं गाँव की दादी चाची . और आँगन के उस पीले हिस्से में कोने में बैठी मासूम जो कुछ समय पहले अपने बचपन को जी भर कर जी रहीं थीं और अब उस पर हल्दी लगाने की रस्मे निभाईं जा रही थी ।
किसी ने ध्यान नहीं दिया होगा कभी और ना ही  पूछा क्या चल रहा था उस नन्ही सी जान के मन में..कैसा पति..कैसा ससुराल..छूटती सखियों की याद और उसके  स्कूल की किताबों से भरा बस्ता उसका .वो छोटी सहेलियां घर की गवाडी मोहल्ले कि गलियां ..सब पीछे छुट जायेगा रह जायेगा ..वो हाथ पांव में लगीं मेहदी हल्दी और फेहरो वाले कपड़े में घूंघट के बीच कितनी पीली और मासूम  बीमार सी लगेंगी।
इस विवाह में कुछ ग्रुप बने हुए थे कुछ जवान लड़कीयो  का जो जी तोड़ काम कर रही थीं ..एक मामा ननिहाल पक्ष के लोगों का जो बाराती की खातिर करते हैं..एक चाचा लोगों का जो पिताजी के आस पास बने रहते है पैसा हिसाब किताब ...एक औरतों का जो घर के अंदर कि वयवस्था के साथ साथ गा रही थी कुछ गीत और सारी रस्मों को करने का काम भी  करा रहीं थीं  है एक तरफ  लड़कियों का एक समूह  जो कुछ नही कर रहीं थीं बस इधर से उधर हंसती मुस्कराती बिंदी कपडा लिपस्टिक की योजना बना रही थीं या फिर खुले आँगन में बन्ना बन्नी  की थाप पर गा रही थीं और नाच रही थी मुझे उस मासूम कि मासूमियत कुछ भी साफ साफ नहीं देखने दे रहीं थीं बस ख्यालों कि इमारत मुझे नीचे दबा रही थी टेंट फड़फड़ा रहा था गर्म हवा और बना बन्नी के गीत सब मुझे चिढा रहे थे  ।सुरज को अपने आशियाने में लौटें हुए काफी वक्त हो गया था,,,,..चाँद अपनी पहरी पर निकल चुका था चाँद की चांदनी में सबके चेहरे गहने और कपड़े सब चमक रहें थें।अगर कहीं अंधेरा था तो वो उस मासूम के जीवन पर।टेन्ट के नीचे बिछी हुई दरियो पर जीमणे वालों की भीड़ आ चुकी थी कुछ लोग हाथ में बरतन बाल्टी लिए हुए सबको जिमा रहे थे जनरेटर से जलाई हुई लाइटें अपनी सबको रोशन कर रहीं थी।    
घोसले से गौरया बिछड़ने वाली थीं कुछ छोटे छोटे बच्चे उस मासूम के साये कि तरह आस पास बनीं हुई अठखेलियां कर रहीं थीं जो विवाह के बंधन रिश्ते नाते सबसे अंजान थीं बार बार नये कपड़ो को आस पास घुमती निहार रही थी शायद उस मासूम का ऐसा चेहरा उनकी सहेलियों ने या किसी ने नही देखा..इतना लम्बा घूँघट शादी के जोड़े में ..बहुत कुछ रश्मे निभाई जानी  थीं कुछ निभ रही थी तो कुछ बाकी ...एक भाई टूटती रात और बीतती रात  के साथ खो देगा मासूम को। बाबुल के हाथ में कन्या दान के वक़्त कांपता भींगता उस मासूम का हाथ छोटे दूल्हे के साथ पलट कर पकड़ा दिया गया अब यह हाथ उसके पति का उसके हमसफ़र उसके जीवनसाथी का था .ये सिसकियों का समय था..।
सजे आँगन में उदास बिस्तर बिछे थे जहाँ उस मासूम के ठीक सामने बैठ कर कुछ महिलाएं गीत गा रही थीं जिसके बीच बैठी थी मैं बिना गाने के अर्थ समझे में सिर्फ उस मासूम को देख रहीं थीं ।वो मासूम अब उनके सहेलियों के  जीजा जी के साथ थी..भरी मांग के सिंदूर और फेरों के बाद वो मासूम और वो बच्चे कितने अजनबी लगने लगे थे एक दुसरे के लिए ...
अब वक्त विदाई का था ...कैसी गठरी बनी थी वो उस लाल शादी के जोड़े में ...धान से घर भरवाते समय सबके आंसूं में डूब रहा था उस मासूम का आँगन बचपन जीवन ...वो मासूम लंबे घूंघट और भारी कपड़ो के बीच से  झांक रही थी शायद अपनी सहेलियों को अपने खिलोनो को निहारना चाह रहीं थीं । में भी यह सोच रहीं थीं .अब कौन बनाएगा इसकि  लम्बी चोटी..कौन प्यार से इसके  चेहरे को हाथ में लेकर लगाएगा वो छोटा सा काजल का टिका ..उस मासूम कि  बातें कौन सुनेगा ..वो अगर  सपने में डर गई तो किससे लिपट के रोयेगी अब खाना कौन बनाएगा .और खिलायेगा कौन उसकी मस्ती  मिमिकारी पर कौन हंसेगा।
लहंगे का कसा हुआ नाड़ा शायद भूख भी नहीं लगने दे रहा होंगा। लंबा घूंघट उसे सांस भी नहीं लेने दे रहा होंगा।
अब मेरी सूखी आखों में भी आँसु कि बुन्दे चुभ रही थी ..
वो मासूम अब आखों से ओझल हो रही थी  उसे गाडी .में बैठाया जा रहा था .मंडप हिल गया आँगन लिपे हुए गोबर से जरा भी नही चमका उस दिन  विदा कर दिया उसे सब उदास .निभाई जाती है ये रस्में ...शायद .दिन बितने के साथ वो  सिख पायेंगी रोटी बनाना ..बर्तन मांजना ..और वो सारे काम जो मा करती थी .।
उसने अपने आंचल में कई नए रिश्ते बाँध लिए थें  . बचपन और शादी के बिच का कितना महीन दर्द होता है .उस मासूम ने जाना महसूस किया और मैंने आखों से देखा ..¡
उस मासूम को जब जिंदगी समझ में आयेगी तब उसके मन में एक ,,,,काश,,,,,इंतजार कर रहा होंगा ।
कि काश ,,,
बस कोई कैसेट रिवाइंड कर दे जीवन की जो बचपन से शुरू हो
कसम से मन लगा कर पढूंगी । ढंग से घर रखना सीखूंगी सिलाई बुनाई ही करवा लेना चलो रसोई के काम सीखा देना सब सीखूंगी 
अलसुबह की ऊब । दूब और हल्दी की कसम 
काश एक बार पुराने आँगन में भेज दे कोई मैं किताबे खोल सारे विषय रट लूँ ....
कभी कभी पलट कर भागने का मन करता होंगा बाबुल के घर वहीं मिलता है सुकून वहीं रोने का कोई कारण नही बताना होता ......
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चावल आटे और रसोई से जूझ रहा होंगा उसका बचपन। शायद उसने कभी नमक तक का हिसाब नहीं सीखा होगा बाबुल के घर 
बचपने ने करवट भी नही ली होगी कि जीवन ने उसे एक नए पाले में ढकेल दिया .... 
बस चल पड़ी थीं जिंदगी,,,परिवार,,,रसोई कि जिम्मेदारियों को ओढ़े 
बस एक सवालिया निशान वो मासूम अपने  आप को खो कर क्या दे गई परिवार को ओर क्या पा लिया परिवार ने मासूम को विदा करके ,,,,????


लेख : सोनल रेबारी पुत्री श्री भूपेंद्र खटाना (पाली)